
Bhupesh Jain
Participant
May 16, 2021 05:55 PMWhat is the difference between Arihant and Sidh bhagwan. When we called them arihant and sidh ??
What is the difference between Arihant and Sidh bhagwan. When we called them arihant and sidh ??
अरिहंत और सिद्ध भगवंत के बीच का प्रमुख फर्क यह है की सर्व(आठ) कर्म का क्षय करके मोक्ष मे गई हुई आत्मा को ही सिद्ध भगवंत कहा जाता है जबकि चार कर्म का क्षय करके केवलज्ञान को प्राप्त करके समवसरण मे देशना आदि द्वारा जो धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करते है उसे अरिहंत कहते है । मोक्ष में जाने के पश्चात महावीर स्वामी आदि अरिहंत(तीर्थंकर) और सिद्ध भगवंत दोनों की अवस्था एक समान ही होती है, परंतु मोक्ष मे जाने से पूर्व अरिहंत तीर्थंकर के रूप मे और सिद्ध भगवंत सामान्य केवली के रूप मे विचरण करते है । जिनके मध्य में निम्नलिखित फर्क होते है :- तीर्थंकर में तीर्थंकर-नाम-कर्म का उदय होता है। सामान्य सर्वज्ञ के मामले में यह अनुपस्थित है। तीर्थंकर गर्भ में ही अवधिज्ञान को धारण करते है। एक सामान्य सर्वज्ञ के लिए यह नियम नहीं है। तीर्थंकर की माता को गर्भाधान के समय चौदह महान स्वप्न आते हैं। सामान्य सर्वज्ञ के मामले में ऐसा नहीं है। तीर्थंकर एक पुरुष होता है, भगवान मल्लिनाथ (19# तीर्थंकर) का मामला एक अद्वितीय अपवाद है। जबकि सामान्य सर्वज्ञ के लिए यह नियम लागू नहीं होता है। तीर्थंकर स्तनपान नहीं करते है। जबकि सामान्य सर्वज्ञ (सामान्य केवली) के लिए यह बात नहीं है। तीर्थंकर एक नियम के रूप में दीक्षा से तुरंत पहले एक वर्ष के लिए दान देते है। सामान्य केवली के लिए यह जरूरी नहीं है। तीर्थंकर सर्वज्ञता प्राप्त करने से पहले प्रवचन नहीं देते हैं, फिर भी, वह एक प्रश्न का उत्तर दें सकते है। सामान्य केवली एक सामान्य तपस्वी के रूप में प्रवचन भी देते हैं। तीर्थंकर दीक्षा के तुरंत बाद मनःपर्यव ज्ञान अवश्य प्राप्त करते है। सामान्य केवली करते है या नहीं भी करते है। तीर्थंकर आत्म-प्रबुद्ध होते है। सामान्य केवली जरूरी नहीं की आत्म-प्रबुद्ध हो । दीक्षा से पहले देवताओं द्वारा औपचारिक रूप से एक तीर्थंकर की माँग की जाती है। सामान्य केवली के लिए एसा नहीं होता । तीर्थंकर चतुर्विधश्रीसंघ की स्थापना करते है, सामान्य केवली नहीं । तीर्थंकर में चौंतीस विलक्षण विशेषताएँ होती हैं, सामान्य केवली में नहीं । तीर्थंकर की देशना में पैंतीस अद्वितीय विशेषताएँ होती हैं। सामान्य केवली की देशना में नहीं। तीर्थंकर क्षत्रिय आदि उच्च जाति-कुल में उत्पन्न होते हैं। सामान्य केवली किसी भी जाति से हो सकते है। तीर्थंकर के पास सम-चतुरस्र संस्थान ( उत्तम शारीरिक संरचना ) होता हैं, सामान्य केवली में छः में से कोई भी शारीरिक संरचना हो सकती है। दो तीर्थंकर कभी एक दूसरे से नहीं मिलते; जबकि सामान्य केवली मिल सकते हैं। एक समय में मौजूद तीर्थंकरों की न्यूनतम संख्या बीस और अधिकतम 170 है। जबकि सामान्य केवली इससे कई गुना अधिक भी हो सकते है । सर्वज्ञ बनने के बाद एक तीर्थंकर को किसी भी दुख का सामना नहीं करना पड़ता है। सामान्य केवली को सामना करना भी पड़ सकता है। तीर्थंकर के लिए एक समवसरण बनाया जाता है; सामान्य केवली के लिए नहीं। तीर्थंकर का पहला प्रवचन कभी असफल नहीं होता; जरूरी नहीं कि सामान्य केवली के मामले में भी ऐसा ही हो। तीर्थंकर की आत्मा हमेशा देवगति से उतरती है या नरक से निकलती है। सामान्य केवली की आत्मा चारों गति में से किसी से भी आ सकती है। एक विशिष्ट क्षेत्र में केवल एक तीर्थंकर ही होते है। जबकि सामान्य केवली कई हो सकते हैं। यहा एक बात उल्लेखनीय है की मोक्ष में जाने के पश्चात तीर्थंकर और सामान्य केवली दोनों की अवस्था एक समान होती है परंतु साधक को स्वयं की वर्तमान आराधना उनके साधक जीवन को लक्ष्य मे रखकर करनी चाहिए ।
Thank you so much.
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