साध्वी पद्मावती ( चित्रसेन )
राजकुमार चित्रसेन को समझाते हुए उसके मित्र रत्नसार ने कहा, " हे राजकुमार ! तुम इस सुंदर और लावण्यवती नारी की प्रतिमा पर मोहित होकर रातदिन उसके विचार में डूबे रहते हो और तुम पर मोहित दुनिया की अनेक सुंदरियों का तनिक भी विचार नहीं करते हो । अपनी इस अजीब सनक का त्याग करने में ही तुम्हारा हित है । "
राजकुमार चित्रसेन ने अपनी विवशता प्रकट करते हुए कहा, " मुझे चाहे जैसे और किसी भी प्रकार से इस प्रतिमावाली राजकुमारी की खोज करना है। " मंत्रीपुत्र रत्नसार ने केवलि मुनि से बिनती करने पर मुनि ने कहा,
" यह पत्थर की प्रतिमा राजकुमारी पद्मावती की प्रतिकृति है । पद्मपुर नगर के राजा पद्मरथराज की पद्मश्री रानी ने पद्मावती को जन्म दिया है । सागर नामक शिल्पी ने उसके रुप-लावण्य को पत्थर में आकारित किया है, परंतु पद्मावती को पुरुष जाति के प्रति अपार द्वेष होने से अब तक अपरिणीत रही है । " राजकुमार चित्रसेन को आशा-निराशा दोनों एक साथ प्राप्त हुई ।
मुनिराज ने इस प्रश्न का समाधान या हल बताते हुए कहा, " पूर्वभव के सम्बन्धों के कारण चित्रसेन का विवाह तो पद्मावती के साथ ही होगा, परंतु उसी पूर्वभव की एक दारुण घटना के कारण पद्मावती पुरुषद्वेषी बनी है । पूर्वभव में एक वन में हंस-हंसी अपने बच्चों के साथ आनंद से रहते थे । एक समय वन में दावाग्नि लगते ही हंस आग बुझाने के लिए सरोवर में पानी लेने गया । सरोवर दूर होने से हंस को वापस लौटने में देरी हुई । अपने बच्चों को लेकर अकेली हंसी उड़ सकने में असमर्थ थी । दावानल में से बचाने के लिए हंस आ नही पाया । अतः हंसी या हंसिनी सोचने लगी कि पुरुष कैसे अहंकारी होते है और सदाकाल ही नारी की उपेक्षा करनेवाले है । यदि पुरुष इतने सारे स्वार्थाध होते है ऐसा ज्ञात होता, तो स्वयं आजीवन अकेली ही रहती । इस प्रकार पुरुषद्वेष से घिरी हुई हंसी बच्चों के साथ जल मरी । हंस वापस लौटा तब अपनी पत्नी तथा बच्चों को जलकर राख हुए देख विलाप करते हुए स्वयं दावानल में कूदकर जल गया ।
मुनिराज ने पूर्वभव की यह कथा कहने के बाद उपाय बताते हुए कहा कि यदि तुम पद्मावती को उसके पूर्वभव के चित्र दिखाओगे तो ताप से ज्यों बर्फ पिघलती है त्यों उसका पुरुषद्वेष पिघल जायेगा और विवाह करने के लिए उत्सुक होगी । ऐसा ही हुआ । राजा पद्मरथ की पुत्री पद्मावती का विवाह चित्रसेन के साथ हुआ । बहुत काल गुजर जाने से चित्रसेन को वसंतपुर की याद आने लगी । वसंतपुर की नदियाँ , मकान, गलियाँ और नगरजनों की याद सताने लगी । चारों प्रकार की सेना , धनसंपत्ति और अंगरक्षकों के साथ पत्नी पद्मावती और मित्र रत्नसार को लेकर उसने वसंतपुर में प्रयाण किया । यहाँ वसंतपुर के राजा वीरसेन और चित्रसेन की सौतेली माता ने उसे मार डालने के तीन उपाय किये , पर तीनों विफल रहे ।
एक रात को एक काला नाग राजकुमार को काटेगा और यदि उसमें से राजकुमार बच गया, तो वह कलिंग की प्रजा पर वर्षो तक शासन करेगा, यह बात यक्ष से रत्नसार ने सुनी । उस रात्रि को रत्नसार ने चित्रसेन के शयनखंड में आये सर्प के तलवार से टुकड़े किये और सरूप के लहूँ की बूँदें रानी पद्मावती की जाँघ पर गिरी । जहरीले सर्प के लहू की बूँदे रानी के लिए घातक सिद्ध होगी ऐसा सोचकर निजी उत्तरीय से रत्नसार लहू की बूँदें पोंछने जा रहा था, तभी यकायक जाग उठे राजा ने यह दृश्य देखा और वह शंका से घिर गया । रत्नसार सब बता दें तो यक्ष के कथनानुसार वह काला पत्थर बन जाये और न बताये तो चित्रसेन को शंका हो जाये । अन्त में रत्नसार ने सत्य हकीकत कह सुनायी और वह पत्थर का हो गया । रत्नसार पर स्वयं ने की हुई शंका और उसने किये हुए समर्पण पर सोचते हुए चित्रसेन ने गुणवान मित्र के साथ ही चिताशयन करने का विचार किया, परंतु उस समय प्रसन्न हुए यक्ष ने कहा ,
" विशुद्ध शीलवती कोई नारी अपने नवजात शिशु को लेकर पत्थर के रत्नसार को स्पर्श करेगी, तो वह पुनः नरदेही बनेगा । "
रानी पद्मावती के यहाँ पुत्रजन्म हुआ और उसके स्पर्श करने से शीलवती के तेज से रत्नसार जीवित हुआ । इन तीनों ने पावन अष्टापद तीर्थ की यात्रा की और ज्ञानी मुनि के उपदेश से वैराग्य अपनाकर मोक्ष प्राप्त किया ।