चेलणा रानी
मगध के सम्राट श्रेणिक में जैन धर्म की भावना जाग्रत करनेवाली और उदात्त संस्कारों की वृद्धि करनेवाली चेलणा रानी के चरित्र में जीवन की धूप-छाँव दोनों नजर आते है । राजा श्रेणिक ने सुज्येष्ठा के रुप की प्रशंसा सुनकर राजा चेटक के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर अपने दूत को भेजा , तब राजा ने कहा कि श्रेणिक के साथ वे अपनी पुत्री का विवाह करना नहीं चाहते । इससे श्रेणिक को सदमा पहुँचा । उसके मंत्री अभयकुमार ने युक्ति से सुज्येष्ठा को ले जाने का वचन दिया । अभयकुमार की युक्ति के कारण सुज्येष्ठा श्रेणिक का चित्र देखकर मोहित हो गई और उसके साथ विवाह करने को उत्सुक हो गई । मंत्री अभयकुमार ने राजा श्रेणिक को वैशाली में बुलवाये और सुरंग द्वारा चेटक राज्य में से सुज्येष्ठा का अपहरण करना तय किया । अपनी बड़ी बहन सुज्येष्ठा की बिदाई की बात जानकर चेलणा बहुत व्यथित हुई । फलतः सुज्येष्ठा ने उसे भी अपने साथ मगध ले जाने का सोचा । दोनों बहनें जाने को तैयार थी , तब सुज्येष्ठा को एकाएक महल में रह गई अपने रत्नाभूषण की पेटी-संदूक का स्मरण हुआ । वह अंलकार की संदूकची लेने वापस गई । राजा श्रेणिक अधिक समय तक रुक सकें ऐसा नहीं था, अतः उस नारी को रथ में बिठाकर शीघ्रता से महल में आये । उन्होंने सुज्येष्ठा को बुलाया तो ज्ञात हुआ कि यह तो सुज्येष्ठा नहीं , किन्तु उसकी छोटी बहन चेलणा हैं । सुज्येष्ठा ने राजा श्रेणिक को पुकार कर बुलाने की कोशिश की , पर दुश्मन के सैनिक आ पहुँचें और राजा श्रेणिक मिलें नहीं । सुज्येष्ठा निराश होकर वापस लौट आई । इस घटना के कारण सुज्येष्ठा का संसार से रस ही उड़ गया और वह साध्वी हो गई । चेलणा का राजा श्रेणिक के साथ विवाह हुआ ।
रानी चेलणा धर्मध्यान कर सके इसलिए राजा श्रेणिक ने एक विशाल महल बनवाया । पूरा महल एक ही खंभे पर खड़ा किया और उसमें नंदनवन जैसा मनहर बगीचा बनवाया । चेलणा प्रत्येक ऋतु के पुष्पों की माला बनाकर सर्वज्ञ प्रभु की पूजा करने लगी ।
एक बार राजा श्रेणिक और चेलणा उद्यान में पधारें हुए प्रभु महावीर के दर्शनार्थ गये । दोनों वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में कड़ाके की सर्दी में ध्यान-मुद्रा में कठोर तप करते हुए वस्त्रहीन मुनि को देखा । दोनों रथ में से नीचे उतरे और मुनि को बार-बार वंदन किया । रात को अपने भव्य महल में रानी चेलणा सो रही थी । दैवयोग से रानी चेलणा का हाथ ओढ़े हुए वस्त्र के बाहर निकल गया और कड़ाके की ठंडी में हाथ अकड़ गया । इस समय चेलणा के हाथ में असह्य वेदना होने पर वह जाग उठी और अचानक महातपस्वी का स्मरण होते ही वह बोल उठी ,
" ओह ! उनको क्या होता होगा ? "
रानी चेलणा के ये शब्द सुनते ही राजा श्रेणिक को संदेह हुआ कि रानी ने किसी परपुरुष को संकेतस्थान पर पहुँचने का वचन दिया होगा । अब वह पूरा हो सके ऐसा नहीं हैं, इससे कदाचित् ऐसे निश्वास के शब्द उसके मुख से निकले होगे । राजा को रानी के चारित्र्य पर शंका उत्पन्न हुई । सारी रात बैचेनी में बिताई । मुँह अँधेरे मंत्री अभयकुमार को बुलाकर आक्रोश के साथ आज्ञा दी कि मेरे अंतःपुर में दुराचार फैला है , इसलिए इस महल को रानी-सहित जला डालो ।
ऐसी आज्ञा देने के बाद राजा श्रेणिक प्रभु महावीर को वंदन करने निकल पड़े । भगवान समवसरण में बिराजमान थे । राजा श्रेणिक के मन में यह संदेह का कीड़ा कुलबुला उठा था । उन्होंने भगवान महावीर के समक्ष अपना हृदय खोलते हुए कहा , " प्रभु ! मेरी रानी चेलणा पतिव्रता है या नहीं ? "
भगवान ने उत्तर दिया , " हाँ , चेलणा पतिव्रता हैं । " भगवान महावीर पर अनन्य श्रद्धा रखनेवाले राजा श्रेणिक के सिर पर मानो आकाश टूट पड़ा । अपनी आज्ञानुसार चेलणा का महल सुलगा दिया गया होगा और वह भस्मीभूत हो गया हो , तो क्या होगा ? राजा श्रेणिक ने वापस लौटकर शीघ्र ही मंत्री अभयकुमार को बुलाकर पूछा , " अंतःपुर जला तो नहीं दिया न ? "
मंत्री ने कहा , " महाराज चिंता मत कीजिए , आपका अंतःपुर सुरक्षित है । राजा की आज्ञा शिरोधार्य मानी जाती हैं , अतः मैने केवल हस्तिशाला ही जला डाली है ।" रानी चेलणा का सतीत्व अंत में जगमगाने लगा ।
साभार : जिनशासन की कीर्तिगाथा